ट्रैक्टर का इतिहास बहुत समृद्ध और विकासशील रहा है, जिसने कृषि के साथ-साथ औद्योगिक क्षेत्रों में भी क्रांतिकारी परिवर्तन लाए। इसका आविष्कार 19वीं सदी के अंत में हुआ था, जब प्रारंभिक ट्रैक्टर भाप इंजन द्वारा संचालित होते थे। पहले ट्रैक्टर मुख्य रूप से बड़े औद्योगिक कार्यों के लिए उपयोग किए जाते थे, क्योंकि वे भारी और महंगे होते थे। 1890 के दशक में अमेरिका की होल्ट कंपनी ने भाप से चलने वाला पहला ट्रैक्टर विकसित किया, जिसने औद्योगिक उत्पादन और कृषि को यंत्रीकृत करने की दिशा में पहला कदम बढ़ाया।
1892 में जॉन फ्रोलिच नामक एक अमेरिकी ने दुनिया का पहला गैसोलीन से चलने वाला ट्रैक्टर बनाया। यह ट्रैक्टर छोटे और मध्यम किसानों के लिए अधिक उपयुक्त था, क्योंकि यह भाप ट्रैक्टरों की तुलना में हल्का और चलाने में आसान था। इसके बाद, 1917 में हेनरी फोर्ड ने ‘फोर्डसन ट्रैक्टर’ विकसित किया, जो उस समय सबसे सस्ता और उत्पादकता बढ़ाने वाला उपकरण साबित हुआ। फोर्डसन ट्रैक्टर ने दुनिया भर में ट्रैक्टरों के उपयोग को लोकप्रिय बनाया और खेती के पारंपरिक तरीकों में बड़ा बदलाव लाया।
1930 के दशक में डीजल इंजन ट्रैक्टरों का आगमन हुआ, जिसने ट्रैक्टर की क्षमता और ईंधन दक्षता में क्रांतिकारी सुधार किया। डीजल ट्रैक्टर अधिक ताकतवर थे और खेती के अलावा निर्माण, खनन, और परिवहन में भी इनका उपयोग तेजी से बढ़ने लगा। इसके बाद, 1960 के दशक से आधुनिक ट्रैक्टरों में हाइड्रोलिक सिस्टम, पावर स्टीयरिंग, और एयर-कंडिशनिंग जैसी सुविधाएँ जोड़ी गईं, जिससे ये और भी अधिक उन्नत और बहुपयोगी बन गए।
भारत में ट्रैक्टर का आगमन 1940 के दशक में हुआ, लेकिन 1960 के दशक में हरित क्रांति के दौरान इसका उपयोग तेजी से बढ़ा। उस समय भारत में खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने और कृषि को आधुनिक बनाने की अत्यधिक आवश्यकता थी। महिंद्रा एंड महिंद्रा और स्वराज जैसी भारतीय कंपनियों ने ट्रैक्टरों का निर्माण शुरू किया, जिससे भारतीय किसानों को आसानी से ट्रैक्टर मिल सके और खेती के काम में तेजी लाई जा सके। ट्रैक्टरों ने भारतीय कृषि को यंत्रीकृत करके उत्पादकता में वृद्धि की और खेती की कठिनाइयों को काफी हद तक कम किया।
आज ट्रैक्टर सिर्फ खेती तक सीमित नहीं हैं, बल्कि निर्माण, सड़क निर्माण, खनन और अन्य औद्योगिक क्षेत्रों में भी व्यापक रूप से उपयोग किए जाते हैं। ट्रैक्टरों में लगातार तकनीकी उन्नति हो रही है, जैसे स्वचालित गियर, सटीक खेती के उपकरण, और जीपीएस सिस्टम, जिससे यह एक बहुआयामी और अत्यधिक उत्पादक मशीन बन चुकी है।